बुलंद आवाज़ न्यूज
रिपोर्ट रघुवीर सिंह नेगी/ उर्गम घाटी
तेरा खातिर छोडि स्याळी बांकी बगूड़ी
बांकी बगूड़ी छोड़े राणियों कि दगूड़ी
छतीस कुटुंब छोड़े बतीस परिवार
दिन को खाणो छोड़ी रात की सेणी
तेरी माया न स्याली जिकुड़ी लपेटी
कोरी कोरी खांदो तेरी माया को मुंडारो
जिकुड़ी को ल्वे पिलैक अपणी
परोसणो छौं तेरी माया की डाळी
डाळीयूँ मा तेरा फूल फुलला
झपन्याळी होली बुरांस डाळी
ऋतू बोडि औली दाईं जसो फेरो
पर तेरी मेरी भेंट स्याळी
कु जाणी होंदी कि नी होंदी ?
जीजा स्याली के प्रेम प्रसंग की अमर गाथा पहाड़ के रग रग में समाई हुई है आज भी पहाड़ में जीतू बगडवाल की लोकगाथा जीवंत है।
भगवान घंटाकर्ण के आदेशानुसार मेला कमेटी उर्गम घाटी में 6 वर्षों के बाद बगडवाल नृत्य का आयोजन हो रहा है जो आगामी पहली जुलाई 2024 को सम्पन होगा। वर्षा के लिए घंटाकर्ण महाराज की आज्ञा पर हो रहा बगडवाल नृत्य जो 11 दिवसीय है जो 1 जुलाई 2024 को रोपणी रोपाई के साथ सम्पन होगा।
इस अवसर पर भूमि क्षेत्र पाल घंटाकर्ण पश्वा महावीर राणा, लक्ष्मण सिंह नेगी, पूर्व प्रधान राजेंद्र रावत, अध्यक्ष कुंवर सिंह नेगी, कुंवर सिंह चौहान गणिया, दरमान सिंह नेगी, प्रताप चौहान पुजारी, नन्दा स्वनूल चन्द्रेश्वर चौहान पश्वा, जीतू बगडवाल विष्णु ममंगाई, राजेश्वरी देवी, मनुला देवी, हीरा सिंह चौहान ढोलवादक, भक्ति गोपाल प्रेम, दीपक, कुंदन सिंह रावत, गीता देवी, सतेन्द्र प्रताप मेहरा, पुष्कर सिह, बदरी, कमल नेगी, विजया देवी, आइशा, ऋषभ, कन्हैया नेगी रहेंगे.
कौन है जीतू बगडवाल?
गमरी पट्टी के बगोड़ी गांव पर जीतू का आधिपत्य था। अपनी तांबे की खानों के साथ उसका कारोबार तिब्बत तक फैला हुआ था। एक बार जीतू अपनी बहिन जिसे स्थानीय भाषा में धियाण कहा जाता है सोबनी को लेने उसके ससुराल रैथल पहुंचता है। बहाना बनाकर व अपनी स्याली (प्रेमिका) भरणा से मिलने का भी अवसर है, जो सोबनी की ननद है।
दोनों एक-दूसरे के लिए ही बने हैं। जीतू बांसुरी भी बहुत सुंदर बजाता है और एक दिन वह रैथल के जंगल में जाकर बांसुरी बजाने लगा। बांसुरी की मधुर संगीत पर आछरियां आकर्षित होती है और वह जीतू को अपने साथ ले जाना चाहती हैं। तब जीतू उन्हें वचन देता है कि वह अपनी इच्छानुसार उनके साथ चलेगा। आखिरकार वह दिन भी आता है, जब जीतू को आछरियां के साथ जाना पड़ा।
जीतू के जाने के बाद उसके परिवार पर आफतों का पहाड़ टूट पड़ा। जीतू के भाई की हत्या हो जाती है। तब वह अदृश्य रूप में परिवार की मदद करता है। राजा जीतू की अदृश्य शक्ति को भांपकर ऐलान करता है कि आज से जीतू को पूरे गढ़वाल में देवता के रूप में पूजा जाएगा। तब से लेकर आज तक जीतू की याद में पहाड़ के गाँवों में जीतू बगडवाल का मंचन किया जाता है।
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