30 साल बाद भी नहीं मिला पूरा न्याय, मुख्य आरोपी बाहर: मैखुरी

बुलंद आवाज़ न्यूज

चमोली मुजफ्फरनगर के चर्चित रामपुर तिराहा कांड में सामूहिक दुष्कर्म, लूट, छेड़छाड़ और साजिश रचने के मामले में पीएसी के दो सिपाहियों पर तीन दशक बाद दोष सिद्ध हुआ। अपर जिला एवं सत्र न्यायालय संख्या-7 के पीठासीन अधिकारी शक्ति सिंह ने सुनवाई की। सजा के प्रश्न पर सुनवाई के लिए 18 मार्च नियत की गई। दोनों दोषी सेवानिवृत्त हो चुके हैं।

शासकीय अधिवक्ता फौजदारी राजीव शर्मा, सहायक शासकीय अधिवक्ता फौजदारी परवेंद्र सिंह और उत्तराखंड संघर्ष समिति के अधिवक्ता अनुराग वर्मा में बताया कि सीबीआई बनाम मिलाप सिंह की और वीरेंद्र सिंह की पत्रावली में अदालत ने सुनवाई की और दोनों आरोपियों पर दोष सिद्ध करते हुए सजा के प्रश्न पर 18 मार्च को सुनवाई की तिथि नियत की गई है.

ऐसे में भाकपा( माले) के राज्य सचिव इंद्रेश मैखुरी का कहना है कि 1994 में 2 अक्टूबर को हुए मुजफ्फरनगर कांड के 30 साल बाद दो आरोपियों को दोषी करार दिया जाना, उस बर्बर दमन की पुष्टि करता है, जो उस काली रात में उत्तराखंड की माता- बहनों और युवाओं के साथ हुआ.

लेकिन अभी भी इस कांड के मुख्य दोषियों को सजा न होना दर्शाता है कि 30 वर्षों में पूर्ण न्याय नहीं बल्कि न्याय का अंश भर ही हो सका है.

मुजफ्फरनगर के तत्कालीन जिलाधिकारी अनंत कुमार सिंह और मेरठ जोन के तत्कालीन डीआईजी बुआ सिंह मुजफ्फरनगर कांड के मुख्य दोषी अधिकारी हैं, जब तक इन्हें सजा नहीं होती तब तक न्याय अधूरा है.

यह विडंबना है कि उत्तराखंड राज्य बनने के 23 वर्षों में किसी सरकार ने उत्तराखंड आंदोलन के दौरान हुए खटीमा, मसूरी, मुजफ्फरनगर और श्रीयंत्र टापू कांड के दोषियों को सजा दिलाने के लिए कोई प्रभावी पैरवी या प्रयास नहीं किया.

 

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