बुलंद आवाज़ न्यूज
चमोली
हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का खास महत्व माना गया है. यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है. लेकिन पूरे साल में सिर्फ एक ही एकादशी ऐसी होती है जिसमें भगवान विष्णु के साथ देवी एकादशी की पूजा की जाती है और इसका खास महत्व भी होता है. जिसे ‘उत्पन्ना एकादशी’ कहा जाता है. यानि एकादशी के दिन उत्पन्न.
पंचाग गणना के अनुसार मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है इस एकादशी को लेकर ऐसी मान्यता है कि मार्गशीष के महीने के 11 दिन भगवान विष्णु के शरीर से एक देवी की उत्पत्ति हुई थी जिस कारण उनका नाम ‘उत्पन्ना एकादशी’ पड़ा. मान्यता है कि इस व्रत को करने से पिछले जन्म के पापों से मुक्ति मिल जाती है. पद्म पुराण के अनुसार स्वयं श्रीकृष्ण ने एकादशी व्रत को समस्त दुखों, पापों से मुक्ति दिलाने, हजारों यज्ञों के अनुष्ठानों की तुलना करने वाला व्रत माना है. एकादशी व्रत रखने वालों को चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है.
जानिए उत्पन्ना एकादशी के प्रकट होने की कथा!
आचार्य डॉ प्रदीप सेमवाल ने उत्पन्ना एकादशी व्रत के महात्म्य के बारे में बताते हैं कि मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को उत्तपन्ना एकादशी मनाई जाती है. बताते हैं कि इस दिन श्रद्धालु व्रत रखते हैं और विधि विधान से भगवान विष्णु के साथ देवी एकादशी की पूजा करते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार, उत्पन्ना एकादशी के दिन ही देवी एकादशी की उत्पत्ति भगवान विष्णु से हुई थी और उन्होंने मुर नामक दैत्य का वध किया था. इस बार उत्पन्ना एकादशी सौभाग्य योग में है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु के शरीर से ही देवी एकादशी की उत्पत्ति हुई थी. भगवान विष्णु योग निद्रा में सो रहे थे, तब दैत्य मुर उन पर आक्रमण करने वाला था. लेकिन उसी समय भगवान विष्णु के शरीर से एक दिव्य स्वरुप वाली देवी प्रकट हुई, उन्होंने भीषण युद्ध कर दैत्य मुर का वध कर दिया. वही देवी उत्पन्ना एकादशी के नाम से प्रसिद्ध हुई.
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