बुलंद आवाज़ न्यूज
देहरादून
उत्तराखंड में कई मंदिर हैं जिनकी अलग अलग मान्यताएं हैं जहां पूजा पाठ के लिए कई विधि विधान हैं लेकिन देहरादून के चकराता ब्लॉक के हनोल मंदिर एक ऐसा मंदिर है जहां मनोकामना पूरी करने के लिए पूजा, भेंट, खानपान निषेध आदि का कोई भी नियम तय नहीं है. साथ ही मंदिर में एक रात बिताने से सारे काम बन जाते हैं और उत्तराखंड से ही नहीं बल्कि हिमांचल प्रदेश जैसे अन्य राज्यों से भी यहां लोग रात बिताने पहुंचते हैं.
महासू देवता मंदिर समिति हनोल के सचिव मोहनलाल सेमवाल ने बताया, मंदिर परिसर में रात बिताने का मतलब जागरण से है। महासू महाराज शिव का ही रूप हैं। मान्यता है कि माता पार्वती ने नहाने से पहले शरीर पर लगाए गए हल्दी के उबटन से गणेश भगवान की उत्पति की थी। इसके बाद वह स्नान के लिए चली गईं और बाहर गणेश को द्वारपाल के रूप में तैनात कर दिया। जब शिव आए तो भगवान गणेश ने उनको द्वार पर रोेक दिया। दोनों के बीच युद्ध हुआ, शिव ने त्रिशूल से भगवान गणेश का मस्तक धड़ से अलग कर दिया। जब शिव का क्रोध शांत हुआ तो उन्होंने गरुड़ को अपने बच्चे की तरफ पीठ कर सो रही माता के बच्चे के सिर को लाने के आदेश दिए। गरुड़ गज शिशु का शीश ले आए। शिव ने भगवान गणेश को गज शीश लगाकर पुनर्जीवित कर दिया। रातभर भगवान शिव, माता पार्वती, शिव गणों और सभी देवी देवताओं ने जागरण किया, तब से ही महासू मंदिर में जागरण या रात बिताने की प्रथा शुरू हुई। हनोल स्थित महासू मंदिर में हरितालिका तीज के साथ जागड़ा पर्व शुरू होता है। सेमवाल ने बताया, हरितालिका तीज भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को होती है। इसके अगले दिन गणेश चतुर्थी तक पर्व चलता है। इस बार हरितालिका तीज 18 और गणेश चतुर्थी 19 सितंबर को है। यहां जागड़ा पर्व पर 20 हजार श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है। करीब पांच से छह हजार भक्त रात भी लगाते हैं।
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