बुलंद आवाज़ न्यूज
देहरादून
उत्तराखंड में सरकारी सेवकों के लिए देश के अन्य राज्य की ही तरह समान नियम हैं। उनके लिए अवकाश, चिकित्सा, सरकारी कर्मचारी आचरण नियमावली सब समान हैं। लेकिन उत्तराखंड में स्थानांतरण के नियम अलग हैं। वर्ष 2017 में प्रदेश सरकार ने स्थानांतरण एक्ट बनाया, लेकिन सुगम-दुर्गम का ऐसा पेच फंसाया, जिससे हर विभाग का कर्मचारी परेशान है। राज्य के तमाम सरकारी विभागों ने सुगम-दुर्गम को अपनी-अपनी सुविधानुसार परिभाषित किया है।
इसको ऐसे समझते हैं, एक कर्मचारी तकनीकी शिक्षा विभाग में नरेंद्रनगर में अपनी सेवाएं दे रहा है, उसके लिए यह कार्यस्थल दुर्गम है, जबकि इसी नगर में अन्य दूसरे विभागों के सभी कर्मचारियों के उनके कार्यस्थल सुगम की श्रेणी में हैं। पूरे राज्य में तमाम स्थानों पर ऐसी विसंगति देखने को मिलती हैं, जहां एक विभाग के कर्मचारी के लिए कोई कार्य स्थल सुगम है, तो दूसरे विभाग के कर्मचारी के लिए वही स्थान दुर्गम है। एक्ट में सुगम-दुर्गम के इस झोल को कर्मचारी संगठन कई बार विभिन्न मंचों पर उठा चुके हैं, लेकिन आज तक इसका समाधान नहीं हो पाया।
प्रदेश में इस वर्ष भी तबादला सत्र की कार्यवाही शुरू हो चुकी है। ऐसे में एक बार फिर यह मुद्दा जोर पकड़ सकता है। इसके अलावा जब से एक्ट बना है, तब से कभी भी शत-प्रतिशत तबादले नहीं हो पाए हैं। हर बार सरकार कोई न कोई बहाना बनाकर 15 से 20 प्रतिशत पर आकर अटक जाती है। इस बार भी सरकार की ओर से केवल 15 प्रतिशत कर्मचारियों के तबादले करने का एलान किया गया है। इससे सुगम-दुर्गम की खाई और गहरी होती जा रही है।
कार्यालय स्थल नहीं कार्यक्षेत्र देखकर हो सुगम-दुर्गम का निर्धारण
राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के प्रदेश अध्यक्ष अरुण पांडेय का कहना है कि जब से उत्तराखंड स्थानांतरण अधिनियम 2017 बना है, हम तभी से कह रहे हैं, इसमें बड़ा झोल है। फिल्ड कर्मचारी के सुगम-दुर्गम का निर्धारण उसके कार्यालय को देखकर नहीं, कार्यक्षेत्र को देखकर किया जाना चाहिए। फिल्ड कर्मी कार्यालय में कम और क्षेत्र भ्रमण पर अधिक रहते हैं। हमने शासन में इस मुद्दे को कई बार उठाया है, लेकिन सुनवाई नहीं हुई।
जाड़ा सबको लगता है, गला सबका सूखता है…
पर्वतीय क्षेत्र में काम करने वाले चिकित्सकों को दुर्गम भत्ता दिया जाता है। राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के प्रदेश अध्यक्ष अरुण पांडेय का कहना है कि क्या दूसरे विभागों के कर्मचारियों को जाड़ा (ठंड) नहीं लगता, या चढ़ाई चढ़ते हुए उनका गला नहीं सूखता है। इसलिए दुर्गम क्षेत्रों में काम करने वाले सभी कर्मचारियों को दुर्गम भत्ता दिया जाना चाहिए।
15 नहीं सौ प्रतिशत हो स्थानांतरण
उत्तरांचल फेडरेशन ऑफ मिनिस्ट्रीयल सर्विसेज एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष पूर्णानंद नौटियाल का कहना है कि कर्मचारियों के शत प्रतिशत तबादले होने चाहिए। एक्ट में प्रावधान है कि लोक सेवकों की प्रथम नियुक्ति, मृतक आश्रित और पदोन्नति में दुर्गम को प्राथमिकता दी जाती है। हर साल होने वाले कुछ प्रतिशत तबादलों में भी दुर्गम को प्राथमिकता दी जाती है, ऐसे में दुर्गम के कार्यालय तो भर जाते हैं, लेकिन सुगम के कार्यालय खाली रह जाते हैं। ऐसे में कर्मचारियों के शत-प्रतिशत तबादले किए जाने चाहिए, ताकि सभी को सुगम-दुर्गम में काम करने का मौका मिले।
एक्ट में परिभाषित है कि ….
जिन कार्मिकों की तैनाती केवल जिला मुख्यालय, निदेशालय पर की जाती है और उनका स्थानांतरण शासन स्तर से या विभागाध्यक्ष स्तर से किया जाता है, उनके लिए विभाग की आवश्यकता के अनुसार सुगम व दुर्गम क्षेत्रों का निर्धारण किया जाता है। इसके लिए प्रत्येक विभागवार सामान्य आधारभूत सुविधाओं जैसे सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा, चिकित्सा, रेल इत्यादि को देखते हुए भी सुगम-दुर्गम का निर्धारण किया जाता है।
यह भी है नियम
जो कार्यस्थल सात हजार फीट से अधिक ऊंचाई पर स्थित हैं, वहां एक वर्ष की तैनाती को दो वर्ष की दुर्गम क्षेत्र में तैनाती के समतुल्य माना जाता है।
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