बच्चों को डिब्बा बंद दूध देते हैं तो हो जाएं सावधान…

बुलंद आवाज़ न्यूज

देहरादून

जन्म के बाद बच्चे को मां का दूध नहीं मिला है तो ऐसे बच्चों में अस्थमा की संभावना अधिक देखने को मिल रही है। इसके अलावा जन्म के समय बच्चे का वजन ढाई किलो से कम है तो बच्चों के फेफड़े कमजोर हो सकते हैं। ऐसे में रेस्पिरेट्री डिस्ट्रेस सिंड्रोम होने की संभावना बढ़ जाती है। यह समस्या आगे चलकर अस्थमा में बदल सकती है।

दून अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. मेजर गौरव मुखीजा ने बताया कि बच्चों में चाइल्डहुड अस्थमा होने की कई वजह हैं। इनमें एनवायरमेंटल के साथ ही जेनेटिक कारण भी शामिल हैं। माता-पिता में किसी को भी अगर अस्थमा की समस्या है तो बच्चे को अस्थमा होने की संभावना बढ़ जाती है। इसके अलावा बच्चे ने मां का दूध न पीकर डिब्बा बंद दूध पिया है तो इन बच्चों में अस्थमा लंबा चलने की समस्या हो सकती है।

तीन साल की उम्र से पहले जिन बच्चों को खांसी के साथ धसका पड़ता है तो छह से आठ साल की उम्र तक आते ही वह ठीक होने लगते हैं। जिन बच्चों में खांसी के साथ धसका तीन साल के बाद आता है वह बच्चे आगे चलकर अस्थमा से पीड़ित हो सकते हैं।

बचपन में नहीं हुआ इलाज तो बुढ़ापे में खतरा

बचपन में अगर अस्थमा का सही इलाज नहीं किया जाता है तो बुढ़ापे में क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) होने की संभावना बढ़ जाती है। इससे अस्थमा लंबा खिंच जाता है। अब अस्थमा का इलाज उपलब्ध है तो शुरुआत में ही इसका इलाज कर लेना चाहिए।

अस्पताल में इस तरह के बच्चे आ रहे हैं

दून अस्पताल की ओपीडी में रोजाना चार से छह बच्चे ऐसे आते हैं, जिनमें अस्थमा होने की संभावना होती है। इन बच्चों की हिस्ट्री पूछने पर पता चलता है कि इनमें जेनेटिक कारण होने के साथ ही ये बच्चे प्रीमौच्योर पैदा हुए होते हैं। इसके अलावा इन बच्चों को मां का दूध भी नहीं मिला होता है।

लक्षण

बिना जुकाम हुए बदलते मौसम में बच्चा खांसता रहे। रात को सोते समय या दिन में इधर-उधर खेल कूद करने पर भी छाती से सांय सांय की आवाज आती है तो बच्चे को अस्थमा होने की संभावना हो सकती है।

उपाय

अस्थमा होने पर डॉक्टर की सलाह पर ही इलाज करें। एलर्जी वाली चीजों धूल, धुआं, धूम्रपान के सेवन से बचाव करें। इसके अलावा इंहेलर का इस्तेमाल भी डॉक्टर की सलाह पर करें। इंहेलर जल्दी शुरू किया जाए तो बचाब बेहतर हो सकता है।

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