बाजवा ने भारत पाकिस्तान युद्ध 1971 के विषय पर खड़ा किया विवाद

बुलंद आवाज़ न्यूज़

देश/विदेश

जनरल बाजवा ने कहा, दुनियाभार में सेनाओं की शायद ही कभी आलोचना की जाती है, लेकिन हमारी सेना की अक्सर आलोचना की जाती है। मुझे लगता है कि इसका कारण सेना की राजनीति में भागीदारी है।

पाकिस्तान के निवर्तमान सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने स्वीकार किया कि सैन्य प्रतिष्ठान राजनीति में शामिल रहा है। उन्होंने कहा कि सेना ने राजनीति में हस्तक्षेप बंद करने का फैसला किया है।  शहीद दिवस समारोह को संबोधित करते हुए जनरल बाजवा ने कहा, दुनियाभार में सेनाओं की शायद ही कभी आलोचना की जाती है, लेकिन हमारी सेना की अक्सर आलोचना की जाती है। मुझे लगता है कि इसका कारण सेना की राजनीति में भागीदारी है। इसलिए फरवरी में सेना ने राजनीति में हस्तक्षेप न करने का फैसला किया

सेना प्रमुख के तौर पर अपने अंतिम संबोधन के रूप में बाजवा ने कहा, कई क्षेत्रों में सेना की आलोचना की और अनुचित भाषा का इस्तेमाल किया। सेना की आलोचना करना राजनीतिक दलों और लोगों का अधिकार है, लेकिन इस्तेमाल की जाने वाली भाषा में सावधानी बरतनी चाहिए। देश के एक प्रमुख अखबार ने सेना प्रमुख के हवाले से कहा, मैं जल्द ही सेवानिवृत्त हो रहा हूं। इस बार यह समारोह कुछ देरी के बाद आयोजित किया जा रहा है। बाजवा 29 नवंबर को सेवानिवृत्त होने वाले हैं। शहीद दिवस 1965 के युद्ध में मारे के सैनिकों के बलिदान के याद में प्रतिवर्ष 6 सितंबर को रावलपिंडी स्थित जनरल हेडक्वार्टर (जीएचक्यू) में आयोजित किया जाता है। हालांकि, इस साल बाढ़ पीड़ितों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए इसे स्थगित कर दिया गया था।

 

बाजवा ने 1971 के युद्ध पर बोलकर खड़ा किया विवाद

इसके अलावा निवर्तमान थल सेनाध्यक्ष (सीओएएस) जनरल कमर जावेद बाजवा ने बुधवार को यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया कि 1971 के युद्ध में केवल 34,000 पाक सैनिकों ने भारत के सामने आत्मसमर्पण किया था। मुख्य अतिथि के रूप में रक्षा और शहीद दिवस समारोह को संबोधित करते हुए, सेना प्रमुख ने कहा कि पूर्वी पाकिस्तान संकट, एक सैन्य नहीं बल्कि एक राजनीतिक विफलता थी। लड़ने वाले सैनिकों की संख्या 92,000 नहीं थी, बल्कि केवल 34,000 थी, बाकी विभिन्न सरकारों से थे। सीओएएस ने कहा कि ये 34,000 लोग 2,50,000 भारतीय सेना के सैनिकों और 200,000 प्रशिक्षित मुक्ति बाहिनी का सामना कर रहे थे, लेकिन फिर भी सभी बाधाओं के बावजूद बहादुरी से लड़े।

स्रोत अमर उजाला

bulandawaaj

बुलंद आवाज़

Share